आदर्श का प्रचार, व्यक्तित्व का प्रचार नही ,श्री श्री आनंदमूर्ति जी
बाबा का रहना भी रहस्यमय।(BABA STORY)
- आचार्य रामेश्वर जीबाबा कहते थे- “मेरा इस जगत में आना भी रहस्यमय है तथा रहना भी रहस्यमय है और जाना भी रहस्यमय होगा। हमलोगों ने इसका अपने जीवन में भरपूर अनुभव किया है ।मैं यहाँ आनन्दमार्ग के प्रारंभिक काल की कुछ बातों के विषय में कहने जा रहा हूँ। बाबा हम लोगों को कहते थे कि तुमलोग मेरे आदर्श का प्रचार करो मेरे व्यक्तित्व का प्रचार नहीं करो। मानव समाज को आनन्दमार्ग के आदर्श के विषय में समझाइए। उनके अपने असली परिचय के विषय में लोगों को बताने के लिये बाबा कठोरता से मना करते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि फिल्ड (मैदान) में टहलते वक्त अन्य कोई नहीं था। सिर्फ मैं और बाबा थे। मैदान के समीपवर्ती पहाड़ के पास एक जल-स्रोत है। कभी-कभी बाबा उस जल-स्रोत से पानी पीने के लिए वहां चले जाते थे। हम लोगों को बताते थे- । पानी अत्यंत औषधि पूर्ण तथा मिनरल्स से भरपूर है। उस दिन भी बाबा पानी पीकर चलने लगे। उस समय वहाँ दूसरा कोई नहीं था। मेरे मुँह से अनायास निकल गया कि बाबा क्या गुरु अपने शिष्य को झूठ बोलने के लिए सिखा सकता है। मेरा सवाल सुन कर बाबा बोले, नहीं जी। मैंने कहा- “परन्तु बाबा आप हम लोगों को सिखाते हैं।” बाबा बोले- कैसे, तो मैंने कहा-बाबा आपके बगल के मकान में रहने वाला मेरा साथी लक्ष्मी मुझसे आपके परिचय के सम्बन्ध बार-बार पूछता और मैं हर बार उसे झूठ बोलकर टाल देता हूँ।बाबा यह सुनकर पहले तो बहुत जोर से हँसे फिर बोले
देखो तुम तो पर हित के लिये झूठ बोलते हो, तुम तो मेरी भलाई के लिये झूठ बोलते हो, तुम्हारा इसमें अपना कोई स्वार्थ नहीं है। मेरा सही-सही परिचय बता दोगे तो जनता मेरे पास भीड़ लगा देगी तथा जो कार्य में कर रहा हूँ उसमें बाधा आने लगी मुझे तो अभी विराट काम करना है।बाबा अपने को बहुत छिपा कर रखते थे। यहाँ तक कि उन्होंने घर के लोगों को भी अपने को पहचानने नहीं दिया। उनका छोटा लौकिक भाई (मानस रंजन) मेरा बचपन का साथी है, उसने भी आचार्य प्रणय कुमार चटर्जी से दीक्षा लिया था, लेकिन उसे भी वर्षों तक पता नहीं था कि उसका गुरू कौन हैं। यद्यपि मानस भी बाबा के साथ ही उसी घर में रहता था। (आनंद मार्ग आचार्य से आनंद मार्ग साधना की दीक्षा लेने के कारण बाबा उसके गुरू हैं)। आप समझ सकते हैं, बाबा अपने को कितना छिपा कर
रखते थे, तभी वे इतना विराट काम कर पाये, जिससे हम सभी
हमेशा अभिभूत रहते हैं।