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: विदर्भ को स्वतंत्र राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर प्राउटिस्ट ब्लॉक इंडिया (पीबीआई) अकोला शाखा ने सोमवार को कलेक्ट्रेट के सामने धरना दिया. पिछले कई दशकों से विदर्भ को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा देने की मांग की जा रही है, और इसके लिए कई तरह के आंदोलन भी किए गए; लेकिन यह मांग अभी तक पूरी नहीं हुई है।

विदर्भ की हमेशा उपेक्षा की जा रही है, महाराष्ट्र राज्य के विकास के लिए विदर्भ को एक स्वतंत्र राज्य का दर्जा दिया जाना चाहिए और ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को गांव में स्थायी रूप से समायोजित किया जाना चाहिए।

प्राउटिष्ट ब्लॉक इंडिया विदर्भ राज्य को लेकर मांग करती है कि
पीबीआई पूंजीवाद साम्यवाद हुआ मिश्रित अर्थव्यवस्था के दोषों से मुक्त श्री प्रभात रंजन सरकार द्वारा प्रदत प्रउत सिद्धांत पर आधारित सुसंतुलित सामाजिक आर्थिक व्यवस्था की स्थापना करना


प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग सबसे पहले स्थानीय लोगों के विकास के लिए किया जाना चाहिए स्थानीय स्तर पर कच्चे माल के आवश्यकतानुसार उद्योग लगाए जाए जिसमें रोजगार के लिए स्थानीय लोगों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। स्थानीय सभी प्रतिष्ठानों एवं उद्योगों को सहकारिता के आधार पर ही संचालित करने का कानून बनाया जाए।

कृषि को उद्योग का दर्जा देकर पुनर्गठित किया जाए ताकि वह लाभकारी हो

सभी प्रकार के नशीली वस्तुएं के के उत्पाद और वितरण पर प्रतिबंध हो
समाज का नेतृत्व ऐसे लोगों के हाथों में होना चाहिए जो नैतिकता में जुड़ हो तथा हर प्रकार के अन्याय शोषण के विरुद्ध लड़ने के लिए सदैव प्रस्तुत हो और साथ ही दुखी मानवता के प्रति उनमें आत्मिक प्रेम तथा निस्वार्थ सेवा की भावना से ओतप्रोत हो राजनीति में भाग लेने का अधिकार केवल नैतिक वानो को ही दिया जाना चाहिए।
आज देश की 90% संपत्ति सिर्फ 10 लोगों के हाथ में जमा हो गई है इससे आर्थिक विषमता को खत्म करने और धन के सही वितरण के लिए अमीरी रेखा लागू की जाए अर्थात किसी भी व्यक्ति को एक निश्चित सीमा से अधिक धन संपत्ति संग्रह करने की अनुमति नहीं होगी न्यूनतम और अधिकतम आमदनी के बीच 10 गुना से अधिक का अंतर नहीं होगा व्यक्ति के वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए अमीरी रेखा का निर्धारण किया जाएगा।
अश्लीलता और भोगवाद को बढ़ाने वाले सिनेमा विज्ञापन धारावाहिक और इंटरनेट आदि पर रोक लगाई जाए।
जनप्रतिनिधियों को मिलने वाले वेतन पेंशन और उसके कार्यपालिका में हस्तक्षेप को समाप्त किया जाए।वि

दर्भ राज्य की माँग के लिए प्राउटिस्ट ब्लॉक, इंडिया (पीबीआई) धरना आंदोलन

25 जुलाई 2022 को, प्राउटिस्ट ब्लॉक, इंडिया (पीबीआई) के राष्ट्रीय संयोजक आचार्य संतोषानंद अवधूत और पीबीआई (विदर्भ) के संयोजक मधुकर निस्ताने ने शासकीय विश्राम गृह, अकोला में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया।

मीडियाकर्मियों को संबोधित करते हुए आचार्य संतोषानंद अवधूत ने कहा:

विदर्भ को अलग राज्य का दर्जा दिलाने के माँग के साथ और देहातों में कार्यरत जाना-आना करने वाले कर्मचारियों के गाँवों में ही स्थाई निवास की व्यवस्था करने की माँग को लेकर लिए पीबीआई (विदर्भ) ने जिलाधिकारी कार्यालय के सामने धरना आंदोलन किया, और तत्पश्चात जिलाधिकारी को अपनी माँगों का एक ज्ञापन दिया।

पिछले कई दशकों से विदर्भ को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग की जा रही है। इसके लिए कई तरह के आंदोलन हुए हैं, लेकिन दुःख की बात है कि विदर्भ के लोगों के साथ हमेशा विश्वासघात हुआ है। इन आंदोलन के नेताओं को पैसे या सत्ता की ताकत से खरीद लिया गया है। यहाँ तक कि नागपुर में जन्मे और कई वर्षों तक महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रहने वाले देवेंद्र फडणवीस ने भी विदर्भ की लंबे समय से लंबित इस मांग को पूरा करने के लिए कुछ नहीं किया।

इस क्षेत्र को राज्य का दर्जा देने की माँग का एक मजबूत आधार है। शुरू से ही विदर्भ की लगातार उपेक्षा की जाती रही है। महाराष्ट्र के बजट का बहुत कम हिस्सा विदर्भ को आवंटित किया जाता है, जो इस क्षेत्र की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त नहीं होता है। महाराष्ट्र के 2/3 खनिजों और 3/4 वन सम्पदा विदर्भ में होने के बावजूद, विदर्भ का औद्योगिक विकाश अपर्याप्त है। विदर्भ का अधिकांश कोयला और अन्य खनिज संसाधन राज्य और देश के अन्य हिस्सों में भेज दिए जाते हैं, जिसके कारण इस क्षेत्र में बिजली की कमी और अन्य उद्योगों का विकाश कम हो गया है। पिछले 15 वर्षों में विदर्भ के 11 जिलों में 45,000 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है। कृषि की स्थिति दयनीय है और इस क्षेत्र में उद्योगों का पूर्ण अभाव है। अब तक सभी राज्य सरकारें विदर्भ के लोगों की जरूरतों और आकांक्षाओं के प्रति असंवेदनशील रही हैं, इसलिए पीबीआई विदर्भ को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की मांग करती है।

उन्होंने कहा, “विदर्भ राज्य की माँग बहुत पुरानी है। यहाँ तक कि भारतवर्ष के पहले प्रधान मंत्री जवाहर लाल नेहरू ने भी 1920 में नागपुर अधिवेशन में अलग विदर्भ राज्य की माँग का समर्थन किया था। प्रश्न उठता है कि कई हालिया आंदोलनों के परिणामस्वरूप तेलंगाना, उत्तराखंड, झारखंड, छत्तीसगढ जैसे छोटे राज्यों का गठन हुआ है, तो विदर्भ को उसका हक क्यों नहीं मिल रहा है?”

पीबीआई (विदर्भ) के संयोजक मधुकर निस्ताने ने कहा:

अगर विदर्भ राज्य को दर्जा मिल जाए और नागपुर इसकी राजधानी बन जाए, तो सरकार तक पहुँचने में आम लोगों को आसानी हो जाएगी। एक से तीन घंटे की छोटी अवधि में लोग व्यक्तिगत रूप से प्रशासन से संपर्क कर सकते हैं। मंत्री एवं जनप्रतिनिधि भी विकाश परियोजनाओं की निगरानी बेहतर ढंग से कर सकेंगे। मुंबई सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है – यह कहकर वे अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं पाएँगे।

आत्मनिर्णय के अधिकार से संसाधनों का ठीक और पूर्ण उपयोग हो सकेगा, तथा विदर्भ के संसाधनों का दूसरों के द्वारा दोहन नहीं किया जाएगा जैसा कि अभी हो रहा है। इसलिए पीबीआई विदर्भ को अलग राज्य का दर्जा दिलाकर सत्ता को नीतिवादियों के हाथों में सौंपने तक चुप नहीं बैठेगी। आने वाले दिनों में हम अपने आंदोलन को और धारदार बनाएँगे।

आचार्य संतोषानंद अवधूत ( राष्ट्रीय संयोजक, प्राउटिष्ट ब्लॉक, इंडिया ) और श्री मधुकर निस्ताने जी ने आंदोलन का नेतृत्व किया। इस आंदोलन में प्रकाश पोहरे जी (संपादक, दैनिक देशोन्नति, एवं पश्चिम विदर्भ के अध्यक्ष, विदर्भ राज्य आंदोलन समिति) भी शामिल हुए। साथ ही, अरुण जी केदार (राष्ट्रीय अध्यक्ष, जय विदर्भ पार्टी ), श्री अरविन्द भोंसले (पोलित ब्यूरो, जय विदर्भ पार्टी), रवींद्र सिंह (लोक संपर्क सचिव, पीबीआई, दिल्ली), डॉ साहेबराव धोत्रे (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष), अन्नाजी राजेधर (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, पीबीआई), विवेकजी डेहनकर (प्रदेश अध्यक्ष), मनोज चौहान (प्रदेश सरचिटनिस), मोहन पंवार (विदर्भ अध्यक्ष, प्राउटिष्ट युवा संगठन, अतुल आत्राम (प्राउटिष्ट विद्यार्थी संगठन), अरुण कपिले (जिला अध्यक्ष, यवतमाल), बालकृष्ण गोतरकर (जिला अध्यक्ष, अकोला), डॉ. जानराव सावनकर (जिला उपाध्यक्ष, अकोला), पंकज वाढवे (सामाजिक कार्यकर्ता), शंकरराव कुंवर (जिलाध्यक्ष, जय विदर्भ पार्टी, अकोला), देवन्द्र गवली (उपाध्यक्ष, जय विदर्भ पार्टी,अकोला), विश्वबंधू अगवान (अध्यक्ष, विदर्भ, अन्यायग्रस्त व सज्जन सुरक्षा संगठन), यशवंत बोंडे (जिलाध्यक्ष, अन्यायग्रस्त व सज्जन सुरक्षा संगठन), भैया साहेब घोड़े (तालुका अध्यक्ष, अन्यायग्रस्त व सज्जन सुरक्षा संगठन), कृष्णाटेकाम (तालुका अध्यक्ष, पीबीआई, पांडरकवड़ा), रावसाहेब धुळे, पांडुरंग किरणापुरे, प्रशांत डोंगरे, संजय कामडी, शुभम बोरकुटे, और निखिल कचरे ने सक्रिय रूप से भाग लिया।