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 *अस्थि कलश  भावजड़ता एवं अंधविश्वास का प्रतीक है

*चाहे वह गंगा स्नान या मक्का मदीना या तीर्थ स्थल या अस्थि कलश स्थापित करके परम पुरुष को खंड खंड में बांटने का प्रयास चल रहा है। आदर्श के तरीके से हम गुरु पूजा में अखंडमंडला कारणम, जो सत्ता अखंड है और चर और अचर में व्याप्त है उसे खंडित कैसे किया जा सकता है।*  *समाज में हम गुरु को कलश स्थापित करके क्या हम समाज में एक आदर्श उदाहरण प्रस्तुत कर सकते हैं। जब हम आनंद मार्ग में दीक्षित हुए तो क्या हम अस्थि कलश को अपना आदर्श मानकर इस संगठन का हिस्सा बने थे।*

 

*धूप दीप आल्पना किछुई लागी बेना मन के धरिते कोरे जाबो आराधना*

*बाबा इस प्रभात संगीत के माध्यम से कह रहे हैं**धूप दीप अल्पना हमें कुछ नहीं चाहिए मन को पकड़कर ही परम पुरुष की आराधना की जा सकती है या उन की अनुभूति की जा सकती है।*

*राजा तुम्ही मनेर राजा विश्व तोमार  अधीने**इस प्रभात संगीत के माध्यम से*   *हे प्रभु तुम मन के राजा हो* *और सारा विश्व तुम्हारे अधीन है*

*उस तारक ब्रह्म को एक अस्थि कलश से बांधने का प्रयास कितनी संकीर्ण भावजड़ता है।*

श्री श्री आनंदमूर्ति जी का अस्थि कलश एवं तीर्थ पर आधारित प्रवचन

सहजावस्था का अर्थ है ‘जो सहजता से प्राप्त है।” याद रखो, घ्यान धारणा और ईश्वर प्राणिधान में कई तरह की मानसिक प्रक्रियायें है। इसलिए सहजावस्था उत्तम है।

अब, सहजावस्था के लिए, यहाँ बाहर से कुछ लेना देना नहीं है। सभी भीतर से ही मिल सकता है। ‘दीक्षा’ का अर्थ है आगे की ओर चलना । इस ‘शाश्वत अग्रगति” को सीखना पड़ता है । मात्र यही दीक्षा है । जो परमात्मा को अपने से बाहर इधर उधर खोजते रहते हैं, जलार्पण आदि तरह तरह के अनुष्ठानों में व्यस्त रहते हैं, वे अपने भीतर परमात्मा को देखने की बजाय बाहर इधर-उधर खोजते रहते हैं, यह इसी तरह से जैसे अपना घर अनाज से भरा है और बाहर भिखमंगी कर रहे हैं। तुम सभी बहुत ही धनवान हो, तुम्हारे भीतर बहुत सम्पत्ति है। तब क्यों बाहर भटकोगे ?

यह तीर्थ स्थान है, यहाँ इस कुण्ड में डुबकी लगाने से अथवा उस नदी में डुबकी लगाने से इतनी मात्रा में पुण्य मिलता है. – यह सारी चीजे झूठ है। यदि कुण्ड मेंढक ही डुबकी लगाने से पुण्य मिल सकता है, तब कुण्ड के सारे जीव जन्तु स्वर्ग प्राप्त कर लेंगे । और आजकल तुम देखोगे, सभी तीर्थ स्थानों के कुण्ड दुर्गन्ध और गंदे जल से भरे हुए हैं। इस तरह के भावबोध से डुबकी लगाने वाला मनुष्य तामसिक भाव से ग्रसित है

जो बाहरी पूजा करते हैं, अपने भीतर स्थित शिव को छोड़कर मन्दिर स्थित पत्थर के शिव की पूजा करते हैं, वे लोग मानो “हस्तस्थं पिण्डमुत्सृज्य भ्रमतेजीविताशयाः” अपनी मुट्ठी के चावल को फेंककर आजीवन के लिए द्वार-द्वार भीख मांगते चल रहे हैं। पिण्ड का अर्थ है ‘अन्न’ । भगवान शिव कहते हैं कि वे लोग वास्तव में मूर्ख हैं जो अपने हाँथ का अन्न फेंककर द्वार द्वार भीख मांगते फिर रहे हैं।

तब पार्वती कहती हैं, “हाँ! अब यह स्पष्ट हो गया। किन्तु एक साधक में क्या-क्या योग्यता होना चाहिए। यह समझाने की कृपा करें।”

श्री श्री आनंदमूर्ति जी

आनंद वचनामृतम खंड 13

शिव पार्वती संवाद 3

BABA’s Ash is a DOGMA. BABA SAYS, ” In the Buddhistic era there was a tradition. It was customary that their religious saints and great personalities’ ashes would be collected and kept in one stone pot after their death. And on this pot, the followers used to construct so many Baudh Vihar and Samgha Ram (Buddhist temples)…..” (Excerpt from Laghu Nirukta (Small Encyclopedia), chapter “ca”.)…………                                                    

                       NOTE: DOGMATIC followers of Buddha created this aforesaid tradition of keeping the ashes of their deceased saints in a pot and using that as a place of worship……………… 

 

And ultimately this same Buddhist DOGMA has reached to our AMPS. and Kolkata group is now decorating Patna BABA QUARTER in order to install/ establish BABA’S Ash there. It is DOGMA…………….. BABA SAYS, ” DOGMA NO MORE ,DOGMA NO MORE “

*आदर्श बड़ा या अस्थि कलश*

*बाबा कहते हैं कि आदर्श के साथ किसी भी तरह का कोई समझौता नहीं*

 *हमारा निर्णय सदा आदर्श गत आधारित होना चाहिए । हम किसी व्यक्ति विशेष के प्रभाव में आकर हम अपने आदर्श के साथ समझौता नहीं कर सकते। हमारा एक एक निर्णय पूरी मानवता को भाव जड़ता की आगोश में ढकेल सकता है। और आने वाली पीढ़ी इसी भाव का शिकार होकर अपने पिता और माता का भी अस्थि कलश की स्थापना का शुरुआत कर देंगे और उस समय हम रोक नहीं पाएंगे। हमें अपने आचरण के द्वारा समाज में आदर्श को प्रतिष्ठित करना है। आनंद मार्ग के दर्शन को प्रचारित प्रसारित करना है।* 

प्रभात संगीत 4512
अवध गये प्रयाग गये मन ना भरा हमरा । तीरथ गये वरत लिए प्रीतम का न मिला इशारा ॥
आ जाना आ जाना आ जाना चित्तचोर, जग् का चाँद तुम, हम हैं चकोर। नाग का नागिन भाव का निचोर, जीवन का एक ही सहारा |
छूट गया छूट गया छूट गया भगवन, समाज-लोकलाज-सुख का स्वपन ।
लेना-देना जावन आवल रहा सिर्फ प्रकाश तुम्हारा ॥
(4512)
 भावार्थ
अयोध्या गये, प्रयाग गये, तीर्थाटन किये किन्तु मन संतुष्ट नहीं हुआ; कुछ और तलाश है मन को, फिर व्रत लिया, तप किया फिर भी परमात्मा की अनुभूति नहीं हुई।
हे परमपिता आ जाओ ध्यान में तुम ही हो मेरे मनमोहन; इस संसार में तुम चाँद हो हम चकोरे । नाग (आश्रयी) का नागिन (आश्रय) हो, भावनाओं के सार हो; जीवन का एक मात्र आशय हो, धूरी हो।
आज मुझे समझ में आया और सब कुछ छूट गया दुनियावी लेन-देन सुख की चाह लोक-लाज सब छूट गया अब सिर्फ तुम्हारा ही प्रकाश मेरे मन मन्दिर में प्रकाशित है।

*आनंदमार्ग की साधना अनुस्ठानमूलक नही है है ध्यान मूलक है।इसीलिए यहां यम नियम ,16 पॉइंट्स  ,चर्या चर्य को मानना है।जो कि ध्यान में जाने के लिए वातावरण तैयार करते है।जहां अनुष्ठान मूलक पूजा है वहां स्थूल माध्यम होता है।जैसे मूर्ति ,दरगाह आदि।सुनते है कि वैष्णो देवी के बारे में जहां जहां देवी के अंग कटकर गिरे वो शक्ति पीठ बन गया।जो शक्ति पीठ को नमन करने जाते है वहां यम नियम किसी की अनिवार्यता नही है।हम लोग प्रकृति पूजा से ऊपर उठकर तंत्र योग की साधना करने लगा।आज हमें कोई ऐसी गलती न तो करनी चाहिए नही भविष्य में अंधविस्वास पनपने की कोई बीज बो कर जानी चाहिए।हम अपने प्रिय जन का दाह संस्कार करने के बाद उसे घरों में नही रखते।आगे उसी परिपाटी की ओर हम जा रहे है।महान आत्माओं के विचार हमारे धरोहर है न कि उनका भस्म।*

⚱️⚱️अथश्री पटना कलश पुराण⚱️⚱️*

*कई लोग तर्क देते हैं कि बहुत सारे गृही मार्गियों ने “बाबा” से सम्बंधित बहुत कुछ सजोंकर रखा है. अगर रखा है तो इसमें बुरा क्या है? भक्त का अपने भगवान से एक व्यक्तिगत सम्बंध होता है जिसमें (किंवदंती ही सही) शबरी अपने प्रभु को जूठे बेर खिलाती हैं तो वहीं भगवान श्रीकृष्ण अपने बाल सखा सुदामा का चरण पखारते हैं. यह नितांत व्यक्तिगत है.*

*इसका एक दूसरा पक्ष भी है कि “बाबा” से सम्बंधित चीजें जो सजोंकर रखी गयी हैं उन्हें हम साष्टांग नहीं करते, उनकी पूजा अर्चना नहीं होती जैसे Lake Garden और तिलजला में “बाबा” से सम्बंधित Museum. और Museum शब्द कहने से ही यह पता चल जाता है कि वहां किन्हीं महापुरुष से सम्बंधित चीजें रखी गईं हैं जो देखने के लिये है उसका कोई आध्यत्मिक महत्व नहीं है.*

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*बाबा कहते हैं इन धर्म मतों के अंधविश्वास को बलपूर्वक दूर नहीं किया जा सकता कारण जिसके प्रति मनुष्य का एक सेंटीमेंट बन गया है उस पर चोट पहुंचाने पर वह और भी बढ़ जाता है इसलिए मनस्रतात्विक पद्धति के द्वारा मनुष्य का यह विश्वास युक्ति हीन है यह समझा देना होगा। उसके लिए चाहिए युक्ति पूर्ण बौद्धिक ज्ञानदीप्त दार्शनिक व्याख्या। मनुष्य के मन में भय वृत्ति जब तेज होती है तब युक्ति तर्क की अपेक्षा अंधविश्वास को मनुष्य प्रश्रय देता है यदि युक्ति तर्क के द्वारा मनुष्य के भय को दूर किया जाए तो अंधविश्वास भित्ति शिथिल हो जाएगी। इसलिए युक्ति पूर्ण तरीके से मनुष्य को दार्शनिक तत्वों को समझाना होगा। फिर भौतिक वस्तुओं के प्रति जो मनोभाव निर्मित हुआ है उसे दूर करने के लिए जिस वस्तु के प्रति मनोभाव निर्मित हुआ है उस वस्तु को दूर हटा लेना होगा अथवा मानवीय*

 *और वैज्ञानिक तर्क देकर उसके मनोभाव को परिवर्तन कर उस वस्तु से उसे दूर हटा लेना होगा। इसलिए विज्ञान और मानवीय तर्क के द्वारा अंधविश्वास दूर करना होगा एवं मनुष्य को एक ही धर्म की पताका के नीचे एकत्रित होना होगा।*

 

अभिमत, मनुष्य का समाज एक और अविभाज्य है

⚱️अथश्री पटना कलश पुराण⚱️⚱️*

*भीड़तंत्र और नेतृत्व……..🚩🚩🚩*

*यह सार्वभौमिक सत्य है कि भीड़ या तो भावुक होती है या आक्रोशित. और भावुकता हो या आक्रोश, इनमें कभी भी सही निर्णय नहीं लिया जा सकता जो Oct, 1990 के बाद Central Committee (CC) द्वारा लिये गये गलत और ग़ैरआदर्शगत निर्णयों में साफ साफ दिखता है.*

*मुझे नहीं पता यह उदाहरण उपयुक्त है या नहीं लेकिन बाबरी मस्जिद को गिराने के लिये कार सेवकों पर नहीं बल्कि उमा भारती जी, लालकृष्ण आडवाणी जी और विनय कटियार जैसे नेताओं पर Case दर्ज हुआ, क्योंकि भीड़ का कोई चेहरा नहीं होता.

आज मार्गों की जागरूकता की कमी के कारण ही संगठन में भाव जड़ता और अंधविश्वास घर कर गया है। इसलिए पहले मार्गी को जागरूक करना आवश्यक है। अगर समाज जागरूक एवं संगठित हो जाएगा तो सभी समस्याओं का हल खुद ब खुद हो जाएगा। कोई भी पक्ष मार्गी जागरूकता से घबराता है।*

 *बाबा के अस्थि कलश की स्थापना करने से आने वाले समय में समाज मैं जब कोई अपने पिता का अस्थि कलश को अपने घर में स्थापित करेगा तो हम क्या तर्क देंगे? सभी मनुष्य में साक्षी सत्ता अर्थात् परमात्मा विघमान है जिस की अनुभूति हम पल पल करते हैं। जैसे कभी हम झूठ बोलते हैं तो साक्षी सत्ता यह एहसास आपको दिलाती है कि आप झूठ बोल रहे हैं। वह साक्षी सत्ता का अनुभव या अनुभूति हम अध्यात्मिक गहन साधना की बदौलत कर सकते हैं।*

जब उस मनुष्य में ही उस साक्षी सत्ता का वास हो रहा हो तो उसका अस्थि कलश क्यों नहीं स्थापित किया जा सकता

*जिन्होंने पृथ्वी की विभिन्न जनगोष्ठियों को भाव जड़ता के बंधन में आबद्ध कर रखा था वही तथाकथित रिलीजन की गुरु है। उन्होंने मनुष्य की चरम क्षति की है। इसके कारण एक सीमा –  बध जीव – समूह, एक सीमा – वध रिलीजस ग्रुप, अन्य ग्रुप के साथ रक्तिम संग्राम में लिप्त रहता है। क्योंकि दोनों में कोई मेल नहीं था। यह उत्तर जाते हैं तो भी वे दक्षिण जाते हैं। भगवान का नाम बेचकर वह अपने कार्य की सिद्धि करते रहते हैं – कहते हैं रहे यह ईश्वर का आदेश है। इस प्रकार का एक ग्रुप, अन्य ग्रुप को अपने शोषण की भूमि के रूप में पाना चाहता है। जिस प्रकार सामाजिक अर्थनैतिक, राजनीतिक क्षेत्र में होता है, उसी प्रकार रेलिजन के क्षेत्र में भी यही होता है।* 

 कनिका में  प्रउत अष्टम, भाग पृष्ठ 52,  

 

आचार्य विशेश्वर जी बाबा की अस्थि कलश पर अपना विचार व्यक्त करते हुए

 

🚩श्री प्रभात रंजन सरकार🚩 

*Baba Says, “….You have not to go to the caves of the Himalayas and to so many tiirthas [places of pilgrimage] in search of your own inner spirit. It lies covert within yourself. Your heart is the best tiirtha. It is the supreme tiirtha. Lord Shiva said:Idaḿ tiirtham idaḿ tiirthaḿ bhramanti támasáh janáh; Átmatiirthaḿ na jánanti kathaḿ mokśa varánane. [Here is one place of pilgrimage, there is another place. People of static nature wander from the one place to the other place. But without finding the real place of pilgrimage within themselves, how can they attain salvation?] “Oh, Párvatii! People, spiritual aspirants, move in search of God in so many tiirthas, but they do not know the self-tiirtha where the Lord lies covert.” So Dharmasya tattvaḿ nihitaḿ guháyám – “The essence of dharma lies covert in your ‘I’ feeling within yourself.” (Chapter-Fighting at Each and Every Step, AVM part 34)*

 *सा विद्या या विमुक्तये’ वह विद्या जो शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक जड़ बंधनों से मुक्त करता हो। और हम असीमित सत्ता को सीमित सत्ता में बांधने का प्रयास कर रहे हैं। जो सत्ता कण कण में चर अचर में व्याप्त है क्या मनुष्य अपने संसाधनों के द्वारा सीमित सत्ता के रूप में प्रतिष्ठित कर सकता है।*⚱

⚱️अथश्री पटना कलश पुराण⚱️⚱️*

तारक ब्रह्म”, विषय या वस्तु……🎁*

*ज्यदा कुछ न कहकर सिर्फ एक बात की ओर सभी का ध्यान आकृष्ट करना चाहूंगा कि “बाबा” हमारे लिये क्या हैं- “विषय (Subject) या वस्तु (Object)”. इस एक प्रश्न में ही सारे सवालों का जवाब छुपा है.*

*यदि आप सुबह ‘गुरु सकाश’ से लेकर ‘ध्यान’ तक यह महसूस करते हैं कि “तुम हो”, तो “वह” हमारे विषय (Subject) हैं. और यदि आप महाप्रयाण के समर्थक हैं, आप कलश स्थापना में विश्वास करते हैं, यदि आप बाबा नगरी में विश्वास करते हैं तो आप माने न मानें लेकिन आपके Subconscious Mind में है कि “तुम नहीं रहे” और “वह” आपके लिए वस्तु भर हैं.*

हमारा कर्म ही बताता है कि हम क्या हैं. यदि हम ईमानदार हैं तो रिश्वत नहीं लेंगे और रिश्वत ले रहे हैं तो फिर ईमानदार कैसे? वैसे ही, आप क्या मानते हैं और क्या स्थापित करते हैं वही तय करेगा कि आप “तारक ब्रह्म” को विषय मानते हैं या वस्तु…..🔥*

*तुमि आमार ध्यान, तुमि आमार ज्ञान*

*तुमि आमार संसार, तुमि आमार संसार*

🙏😌🙏😌🙏😌🙏😌🙏😌🙏*बाबा कहते हैं इन धर्म मतों के अंधविश्वास को बलपूर्वक दूर नहीं किया जा सकता कारण जिसके प्रति मनुष्य का एक सेंटीमेंट बन गया है उस पर चोट पहुंचाने पर वह और भी बढ़ जाता है इसलिए मनस्रतात्विक पद्धति के द्वारा मनुष्य का यह विश्वास युक्ति हीन है यह समझा देना होगा। उसके लिए चाहिए युक्ति पूर्ण बौद्धिक ज्ञानदीप्त दार्शनिक व्याख्या। मनुष्य के मन में भय वृत्ति जब तेज होती है तब युक्ति तर्क की अपेक्षा अंधविश्वास को मनुष्य प्रश्रय देता है यदि युक्ति तर्क के द्वारा मनुष्य के भय को दूर किया जाए तो अंधविश्वास भित्ति शिथिल हो जाएगी। इसलिए युक्ति पूर्ण तरीके से मनुष्य को दार्शनिक तत्वों को समझाना होगा। फिर भौतिक वस्तुओं के प्रति जो मनोभाव निर्मित हुआ है उसे दूर करने के लिए जिस वस्तु के प्रति मनोभाव निर्मित हुआ है उस वस्तु को दूर हटा लेना होगा अथवा मानवीय*

 *और वैज्ञानिक तर्क देकर उसके मनोभाव को परिवर्तन कर उस वस्तु से उसे दूर हटा लेना होगा। इसलिए विज्ञान और मानवीय तर्क के द्वारा अंधविश्वास दूर करना होगा एवं मनुष्य को एक ही धर्म की पताका के नीचे एकत्रित होना होगा।*

अभिमत, मनुष्य का समाज एक और अविभाज्य है:

 *Cosmic sentiments alone can be unifying force which shall strengthen humanity to smash the bondages  and abolish all narrowistic walls of fassifarous tendencies*

अभिमत

[ *Baba Says, “Where is the abode of this Paramátmá? Its abode is the human mind. It is meaningless and unnecessary to run hither and thither and to journey to so-called places of pilgrimage in quest of Parama Puruśa, because He is seated right inside the “I” feeling of the human mind. He is not an object of a distant heaven…..”* (SS part 11, Chapter – What Is the Way?, 26 February 1971 DMC, Jammu )

*

आचार्य कृपानंद दादा बाबा के अस्थि कलश पर विचार व्यक्त करते हुए

 

पटना आश्रम*

ये अजीबोगरीब संयोग है या बाबा की इच्छा कहे कि बाबा के सम्पूर्ण लौकिक /अलौकिक जीवन के संदर्भ में जो भी 6महवपूर्ण जगह (जमालपुर ,कोलकाता , आनंदनगर,वर्धमान,रांची और पटना) वरिस्ठ पुरोधाओं द्वारा चिन्हित हुए उनमे एक पटना का बाबा क्वार्टर ही ऐसा जगह अभी तक बचा है जो बाबा के महाप्रयाण के 30 वर्ष बाद भी अपनी अदर्शगत छवि पर कायम है।क्योंकि बाकी सभी जगह के बाबा क्वार्टर बाबा के अस्थि कलश रखकर अपनी अदर्शगत छवि खो चुके है।इसलिए पटना बाबा क्वार्टर पूरी दुनिया के भक्तो का केंद्र है।इसकी छवि को बनाये रखने के लिए जितना प्रयाश हो रहा है उतना आज तक किसी भी बाबा क्वार्टर के लिए नही हुआ।कुछ उनकी विशेष मर्जी है ऐसा आभास होता है।*

 *”Baba Says*

*Dogma is dangerous because it’s obstruct the intellectual and creative expression of people which are two basic most important factor needed for human progress. the Wellwisher of humanity will have to be ever conscious of this harsh reality and constantly and boldly fight against all shots of dogma .this alone will insure the creation of healthy happy and progressive human society.*

*Dogma*

*Now if there is an idea which does not have the support of intellectuallity reasoning and logic but it simply imposed on people as a boundary line not allowing them to go beyond it and think of anything new then that the idea automatically become a dogma .Dogma creats unnaturalness aversion to rational thinking denial of  experimental facts and fissiparous tendencies in the mind of People. that is why in the human history dogma have always prove to be a very very harmful and deadly to human civilization.*

AMV PART 9

: *Baba says*

*Dogma*

*Now if there is an idea which does not have the support of intellectuallity reasoning and logic but it simply imposed on people as a boundary line not allowing them to go beyond it and think of anything new then that the idea automatically become a dogma .Dogma creats unnaturalness aversion to rational thinking denial of  experimental facts and fissiparous tendencies in the mind of People. that is why in the human history dogma have always prove to be a very very harmful and deadly to human civilization.*

AMV PART 9

 *भूतकाल में की गई गलतियां क्या वर्तमान में ठीक नहीं की जा सकती। बाबा के सेंटीमेंट को देकर कभी भी आदर्श की स्थापना नहीं की जा सकती। ईष्ट के साथ उनका आदर्श जुड़ा हुआ है। अगर कलश का इतना ही महत्व होता तो बाबा को यम नियम 16 पॉइंट और साधना देने की आवश्यकता नहीं पड़ती। जितनी भी संसार में भौतिक चीजें हैं वह सब सीमित सत्ता है। लेकिन परम पुरुष असीमित एवं अखंड सत्ता है उनको किसी भी सीमा के अंदर बांधा नहीं जा सकता। और जो लोग उनको बांधने का प्रयास कर रहे हैं चाहे वह अस्थि कलश के रूप में क्यों ना हो , तीर्थ स्थल , मक्का मदीना गंगा स्नान, के रूप में क्यों ना हो । यह सब प्रयास बेकार है। साधना ध्यान और कीर्तन के द्वारा ही उनकी अनुभूति मिल सकती है। जो सत्ता हमारे साथ हर पल हर वक्त कण कण में व्याप्त है। उस सत्ता को किसी अस्थि कलश में प्रतिष्ठित करके समाज के सामने कौन सा आदर्श स्थापित करना चाहते हैं। एक तरफ हम अखंड मंडला कारम कहते हैं और दूसरी और उसे खंड में बांटने का प्रयास करते हैं।* *जिन लोगों ने बाबा का सेंटीमेंट देकर भाषा का सेंटीमेंट देकर मार्गी समाज को बांटने का प्रयास किया आज वह खुद बिखरे हुए हैं। हम समाज के सामने कौन से पुरोधा के आचरण को आदर्श के रूप में स्थापित करके समाज का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं। जिन्होंने बाबा की आदर्श की लाज नहीं रख पाए। एक चूल्हा एक चौका एक है मानव समाज इसको इस धरा पर प्रतिष्ठित नहीं कर पाए तो क्या उस परम पुरुष को अस्थि कलश के रूप में स्थापित करके मानवता को एक कर सकते हैं? या अपने आदर्श को स्थापित कर सकते हैं?*

: *BABA SAYS, “Human beings yield to this dogma with the sole intention of attaining selfish pleasures; even educated people knowingly submit to dogma. They know that they are surrendering their intellect to dogma, and that the outcome will be undesirable; they know and understand everything – why, even then, do they knowingly submit to it? They are all deliberate sinners and intentionally accept dogmas as truth….” (31 Dec 1981, Anandanagar, Discourse 6 of “The Liberation of Intellect”)*

[👆🏿👆🏿👆🏿 *बाबा का यह प्रवचन बहुत ही महत्वपूर्ण है। और वर्तमान परिपेक्ष में जो भी लोग डॉग मा को प्रश्रय देकर उसी को सत्य मान रहे हैं*